मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय | Munshi Premchand biography in hindi
नमस्कार दोस्तों, हमारे इस ब्लॉक में आपका स्वागत है आज के इस लेख में हम आपको मुंशी प्रेमचंद के जीवन परिचय के बारे में बताने जा रहे हैं। वह हिंदी भाषा के बहुत बड़े कवि थे हिंदी एक ऐसा विषय है जो हर किसी को पसंद होता है। अर्थात कह सकते हैं।
यह विषय सरल के लिए बहुत सरल और कठिन के लिए बहुत कठिन बन जाता है। हिंदी को हर दिन एक नया रूप और एक अलग पहचान देने वाले जमीन से जुड़े उपन्यासकार और कथाकार मुंशी प्रेमचंद के बारे में बताएंगे।
इनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था मुंशी प्रेमचंद जी का बचपन बहुत ही संघर्षों से गुजरा था जो उनकी रचनाओं में अक्सर देखने को मिलता है। उनके उपन्या समाज के हर वर्ग के लोगों की लड़ाई के लिए साहित्य था।
बंगाल के प्रसिद्ध उपन्यासकार शरदचंद्र चटोपाद्धयाय ने मुंशी प्रेमचंद को उपन्यास के सम्राट की उपाधि दी थी इनके द्वारा 300 से भी ज्यादा कहानियां लिखी गई है जो कि हिंदी और उर्दू भाषा में रचित हैं उनकी लेखन की सबसे बड़ी खासियत यह थी।
उनके द्वारा लिखी गई सभी कविताएं बहुत ही सरल ढंग से लोग समझ जाते थे. इस प्रकार मुंशी प्रेमचंद ने अपना जीवन हिंदी साहित्य के लिए ही समर्पित कर दिया.
आइए जानते हैं मुंशी प्रेमचंद के जीवन परिचय, शिक्षा, पुरस्कार और सम्मान, प्रमुख रचनाएं, प्रमुख कहानियां प्रमुख उपन्यास मृत्यु जैसे अनेक बातें इस लेख में आपको बताएंगे तो हमारे लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
Table of Contents
कवि मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय (Munshi Premchand biography in hindi)
नाम | कवि मुंशी प्रेमचंद |
वास्तविक नाम | धनपत राय श्रीवास्तव |
उर्दू भाषा में नाम | नवाबराय |
जन्म | 31 जुलाई, 1880 |
जन्म स्थान | लमही गांव, जिला-वारणशी, उत्तरप्रदेश |
धर्म | हिंदू |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
मृत्यु | 8 अक्टूबर 1936 |
रचनाये | रंगभूमि, कर्मभूमि, गोदान, मानसरोवर, संग्राम, |
व्यवसाय | लेखक, उपन्यासकार |
निधन स्थान | उत्तर प्रदेश के वाराणसी |
विधाएँ | निबंध, नाटक, उपन्यास, कहानी |
मुंशी प्रेमचंद के बारे में जानकारी ( Munshi Premchand biography in hindi)
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 30 जुलाई 1880 को बनारस के एक छोटे से गांव लमही में हुआ था. मुंशी प्रेमचंद एक छोटे और साधारण परिवार से सिर थे. गुरु सहाय राय उनके दादाजी का नाम था जो पेशे से पटवारी थे और उनके पिताजी पोस्ट मास्टर थे.अजायब राय जिनका नाम था जिनका वेतन ₹25 महा था बचपन से ही इनका जीवन बहुत ही संघर्षों से गुजरा था।
क्योंकि जब मुंशी प्रेमचंद 8 वर्ष के थे एक बहुत बड़ी गंभीर बीमारी के कारण उनकी माता जी का देहांत हो गया था। माता जी के देहांत के बाद मुंशी प्रेमचंद को मां का प्यार नहीं मिल पाया इसके बाद उनके पिताजी जो सरकारी नौकरी में थे। उनका तबादला गोरखपुर हो गया और पिताजी ने दूसरी शादी कर ली दूसरी शादी के बाद सौतेली मां ने कभी भी मुंशी प्रेमचंद को अपना बेटा नहीं समझा।
इस प्रकार मुंशी प्रेमचंद का बचपन से ही संघर्षों का सामना करना पड़ा। जैसे – जैसे बड़े होते गए उनका लगाव हिंदी भाषा की ओर बढ़ता चला गया। जिसके लिए उन्होंने हर संभव संघर्ष और प्रयास किया प्रारंभ में उन्होंने छोटे-छोटे उपन्यास पढ़ना प्रारंभ किया। उनकी पढ़ने की इस रुचि के कारण वह एक थोक पुस्तक व्यापारी के यहां नौकरी करने लगे।
मुंशी प्रेमचंद का परिवार ( Munshi Premchand family)
नाम | मुंशी प्रेमचंद |
मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम | धनपत राय श्रीवास्तव |
पिता का नाम | अजायब राय |
माता का नाम | आनंदी देवी |
दादाजी का नाम | गुर सहाय राय |
पहली पत्नी का नाम | जानकारी नहीं |
दूसरी पत्नी का नाम | शिवरानी देवी |
दूसरी पत्नी के संतान का नाम | श्रीपत राय, अमृतराय और कमला देवी |
हिंदी साहित्य नाम | उपन्यास सम्राट |
मुंशी प्रेमचंद की प्रारंभिक शिक्षा (Munshi Premchand Education)
मुंशी प्रेमचंद की प्रारंभिक शिक्षा का आरंभ उर्दू फारसी भाषा से हुआ था जब इनकी उम्र 7 साल थी मुंशी प्रेमचंद की पढ़ाई अपने ही गांव लमही मैं एक छोटे से मदरसा से से हुई थी। मदरसा में रहकर इन्होंने उर्दू फारसी के साथ – साथ हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया।
प्रेमचंद को बचपन से ही पढ़ने लिखने का बहुत शौक था। इस प्रकार धीरे-धीरे स्वयं के दम पर उन्होंने अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाया जब मुंशी प्रेमचंद 13 वर्ष के थे। तब उन्होंने तिलिस्म-ए-होशरूबा पढ़ ली और उन्होंने उर्दू के मशहूर रचनाकार के कई उपन्यास भी पढ़ें ।
इस प्रकार स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के लिए उन्होंने बनारस के एक कॉलेज में एडमिशन करवाया गरीबी के कारण उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी थी। कठिन परिश्रम के कारण उन्होंने मैट्रिक पास कर ली थी परंतु इसके बाद भी मुंशी प्रेमचंद ने हार नहीं मानी और संघर्ष जारी रखते हुए 1919 में बीए की डिग्री प्राप्त कर ली।
मुंशी प्रेमचंद की शादी (Munshi Premchand marriage)
मुंशी प्रेमचंद का बचपन बहुत ही संघर्षों से गुजरा था। उन्हें कभी भी परिवार का प्यार और जीवन में सुख प्राप्त नहीं हुआ। जब वह 15 वर्ष के थे तब उनके सौतेले नाना ने उनका व्यवहार एक लड़की से करवा दिया यह व्यवहार प्रेमचंद की मर्जी के बिना,उनसे बिना पूछे हुआ था।
उस समय की की रचनाओं के विवरण से पता लगता है कि वह लड़के ना तो सुंदर थी लेकिन स्वभाव से वह झगड़ालू प्रवति की थी उनकी शादी सिर्फ अमीर परिवार को देखकर कर दिया गया था.
मुंशी प्रेमचंद की शादी के एक साल बाद उनके पिताजी का निधन हो गया था उसके बाद घर का पूरा भार मुंशी प्रेमचंद के ऊपर आ गया। इस विकट विपत्ति के कारण प्रेमचंद को अपनी नौकरी के साथ अपनी कीमती वस्तुओं को बैठकर घर चलाना पड़ा था।
उन्होंने अपने पैसों के अभाव के कारण कोर्ट और किताबें भेज दी थी इसके बाद उन्होंने प्रथम पत्नी से नहीं जमने के कारण उसको तलाक दे दिया और दूसरी शादी कर ली।
मुंशी प्रेमचंद का दूसरा विवाह ( Munshi Premchand second marriage )
मुंशी प्रेमचंद ने पत्नी को तलाक देने के बाद सन 1906 मैं बाल विधवा से दूसरी शादी कर ली। जिस लड़की से उनकी शादी हुई थी। उसका नाम शिवरानी देवी था शिवरानी की 3 संतान थी जिनका नाम श्रीपत राय, अमृतराय और कमला देवी था उनके पिता एक जमीदार थे जो कि फतेहपुर के पास रहते थे, कह सकते हैं कि पुराने समय में दूसरी शादी एक विधवा लड़की से करने वाले प्रेमचंद कितने साहसी व्यक्ति थे इस बात से अनुमान लगाया जा सकता है।
दूसरी शादी करने के बाद मुंशी प्रेमचंद का जीवन बदल गया, आर्थिक संकट मैं सुधार हो गया था और वह अपनी मेहनत के कारण स्कूलों के डिप्टी स्पेक्टर बन गए। भगवान जब दुख देता है तो एक समय बाद भी देता है कह सकते हैं। यह समय मुंशी प्रेमचंद के अच्छे दिन थे। इन्हीं दिनों के बीच इनकी पांच कहानी का संग्रह सोजे वतन प्रकाशित हुआ और यह कहानी का संग्रह बहुत ही लोकप्रिय हुआ था।
प्रेमचंद जी की प्रमुख रचनाये के नाम (Munshi Premchand creations Name)
मुंशी प्रेमचंद के द्वारा लिखित सभी रचनाएं हिंदी साहित्य में एक अलग ही रचित है क्योंकि उन्होंने कहानी, नाटक, उपन्यास, संस्मरण, समीक्षा, लेख आदि इन सभी में लगभग प्रत्येक क्षेत्र में साहित्य सृजन किया है इसी के कारण उन्हें उपन्यास सम्राट के नाम से हिंदी साहित्य में जाना जाता है.
मुंशी प्रेमचंद ने हर तरह की रचनाएं लिखी है हम बचपन से ही यह सभी रचनाएं पढ़ते आ रहे हैं इन सभी रचनाओं में से प्रमुख रचनाएं सेवा सदन, कायाकल्प , गवन, रंगभूमि और गोदान जैसी श्रेष्ठ रचनाएं हैं मानसरोवर कहानी 8 खंडों में संकलित है उनके निबंध “कुछ विचार” नामक पुस्तक में संकलित है कफन उनके द्वारा लिखी गई अंतिम कहानी है।
मुंशी प्रेमचंद पुरस्कार और सम्मान ( Munshi Premchand Awards )
- भारतीय डाक विभाग द्वारा मुंशी प्रेमचंद की याद में 30 पैसे मूल का डाक टिकट जारी किया गया ।
- प्रेमचंद जैसे स्कूल में गोरखपुर में पढ़ते थे वहीं पर प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना हुई।
- प्रेमचंद घर के नाम से उनकी दूसरी पत्नी शिवरानी देवी ने एक जीवनी लिखी।
मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखे प्रमुख उपन्यास
उपन्यास | सन |
सेवा सदन | 1918 |
रंगभूमि | 1925 |
निर्मला | 1927 |
कायाकल्प | 1926 |
गबन | 1931 |
गोदान | 1936 |
प्रेमाश्रम | 1921 |
कर्मभूमि | 1932 |
मुंशी प्रेमचंद प्रमुख कहानियां
मुंशी प्रेमचंद के द्वारा 118 कहानी लिखी गई है लेकिन इन सभी में यह सभी प्रमुख कहानियां हैं.
1 | दुनिया का सबसे अनमोल रत्न |
2 | पूस की रात |
3 | बड़े भाई साहब |
4 | बूढ़ी काकी |
5 | विद्वान |
6 | ठाकुर का कुआं |
7 | दूध का दाम |
8 | मंत्र |
9 | पंच परमेश्वर |
10 | गुल्ली डंडा |
11 | कफन |
12 | ईदगाह |
13 | दो बैलों की कथा |
मुंशी प्रेमचंद के प्रमुख नाटक
कबला | 1924 |
संग्राम | 1923 |
प्रेम की वेदी | 1933 |
मुंशी प्रेमचंद के अनमोल वचन ( Munshi Premchand Quotes in hindi )
मुंशी प्रेमचंद के द्वारा कुछ ऐसे प्रेरणादायक अनमोल वचन लिखे गए हैं जो आज के युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है आइए जानते हैं मुंशी प्रेमचंद के अनमोल वचनों के बारे में –
1. अन्याय का सहयोग देना,
अन्याय करने के समान है।।
2. आत्मसम्मान की रक्षा करना हमारा सबसे बड़ा पहला धर्म है।
3. खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है।
जीवन नाम है सदैव आगे बढ़ते रहने की लगन का
4. विपत्ति से बढ़कर…
अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला।।
5. धन खोकर यदि हम अपनी आत्मा को पा सकते हैं
तो कोई महंगा सौदा नहीं है।।
6. सिर्फ उसी को अपनी संपत्ति समझो
जिसे तुम ने मेहनत से कमाया है।।
7. क्रोध में मनुष्य अपनी मन की बात नहीं कहता,
वह केवल दूसरों का दिल दुखाना चाहता है।।
प्रेमचंद का कार्य क्षेत्र ( Munshi Premchand work area )
मुंशी प्रेमचंद अपने काम के लिए बचपन से ही बहुत ज्यादा मेहनती थे इतना संघर्ष करने के बाद भी उन्हें आखरी समय तक हार नहीं मानी और जीवन के अंतिम समय तक उन्हें कई कविताएं और उपन्यास लिक दिए।
प्रेमचंद ने नौकरी छोड़ने के बाद कुछ समय तक “मर्यादा” पत्रिका का संपादन किया, फिर उसके बाद लगभग 6 वर्ष तक लगभग “माधुरी” नाम की एक पत्रिका का संपादन किया। उसके बाद प्रेमचंद ने हंस नाम की मासिक पत्रिका सन 2030 में बनारस में स्वयं की प्रकाशित कर ली। उसके बाद 1932 में जागरण नाम का एक और साप्ताहिक पत्र शुरू कर कर दिया।
“मजदूर नामक फिल्म” सन 1934 में रिलीज हुई इसका लेखन भी प्रेमचंद के द्वारा ही किया गया था। परंतु मुंबई की सभ्यता और फिल्म दुनिया, उन्हें पसंद ना आने के कारण 1 वर्ष का कांटेक्ट का समय पूरा किए बगैर वह 2 महीने पगार छोड़कर बनारस वापस आ गए।
उसके बाद उन्होंने सन् 1936 में अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। सन 1915 में मुंशी प्रेमचंद ने कहानियां लिखना प्रारंभ किया और 1918 में उपन्यास लिखना शुरू किया पंच परमेश्वर प्रेमचंद की हिंदी में प्रकाशित पहली कहानी थी।
उन्होंने लगभग 118 कहानियां, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बॉल पुस्तकें, भाषण, पर लेख लिखे हैं लेकिन इन सभी के बावजूद उनकी ख्याति उपन्यास कथा साहित्य बना प्रेमचंद जी की कई रचनाओं का अनुवाद जर्मनी रूसी अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में हुआ था। गोदान उपन्यास को उनकी कालजई रचना माना जाता है इस तरह जीवन मे, हर एक प्रयास और मेहनत कर उन्होंने आखरी सास तक प्रयत्न किये ।
मुंशी प्रेमचंद जीवन संबंधी विवाद
मुंशी प्रेमचंद एक बहुत बड़े उपन्यासकार थे. इसके बावजूद भी उनका जीवन विवादों में था. प्रेमचंद की के ऊपर यह आरोप लगाया गया था।
कि उन्होंने अपनी पहली पत्नी को बिना कारण के छोड़ा था तथा दूसरी पत्नी के साथ शादी करने के बाद भी उनके किसी अन्य महिला के साथ संबंध थे। यह सभी बातें उनकी दूसरी पत्नी शिवरानी देवी के द्वारा प्रेमचंद घर में लिखा था।
ऐसा भी कहा जाता है कि उनके द्वारा जागरण विवाद में विनोद शंकर व्यास जी के साथ भी धोखा किया गया है। लेकिन उनकी काबिलियत के कारण है। वह लोग कम याद करते हैं, वैसे तो मुंशी प्रेमचंद एक बहुत बड़े हिंदी साहित्य थे लेकिन उनकी दूसरी पत्नी ने यह बात लिखी है।
मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु ( Munshi Premchand Death )
मुंशी प्रेमचंद्र का स्वास्थ्य साल 1936 के बाद खराब रहने लगा और पैसे की तंगी के कारण उनका उपचार ठीक से नहीं हो पाया एक महान कवि और कलम के जादूगर का निधन 8 अक्टूबर 1936 को वाराणसी में हो गया वह एक जलोदर नामक भयंकर बीमारी से ग्रसित थे।
उनकी लंबी बीमारी के कारण उनका अंतिम उपन्यास मंगलसूत्र भी पूरा नहीं हो पाया। जिसे उनके पुत्र अमृत के द्वारा किया गया मुंशी प्रेमचंद एक बहुत बड़े उपन्यासकार थे हिंदी साहित्य में उनकी एक अलग ही छवि थी। अपनी सरल भाषा के कारण सभी उन्हें जानते थे।
Q. मुंशी प्रेमचंद किस लिए प्रसिद्ध है?
मुंशी प्रेमचंद आधुनिक हिन्दुस्तानी साहित्य के लिए प्रसिद्ध है।
Q. मुंशी प्रेमचंद की कौन सी उपासना है?
मुंशी प्रेमचंद की गोदान, ईदगाह, कफन, निर्मला, दो बेलों की कथा है
Q. मुंशी प्रेमचंद कितनी रचनाएं हैं?
मुंशी प्रेमचंद 300 रचनाएं हैं।
Q. मुंशी प्रेमचंद का जन्म कब और कहां हुआ था?
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को लमती वाराणसी में हुआ था।
Q. मुंशी प्रेमचंद की मृत्यृ कब हुई?
मुंशी प्रेमचंद की मृत्यृ 8 अक्टूबर 1936 को वाराणसी में हुआ।
Q. प्रेमचंद जी की जयंती कब मनाई जाती है?
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लमही गांव में हुआ था। आज उनकी 140 वी जयंती मनाई जा रही है।
Q. मुंशी प्रेमचंद जी ने कितनी कहानियां लिखी?
मुंशी प्रेमचंद जी ने 300 से ऊपर कहानियां लिखी थी।
Q. प्रेमचंद जी का जन्म कब हुआ ?
प्रेम चंद जी का जन्म वारणशी जिले के लमही गांव के कायस्थ परिवार में 31 जुलाई 1880 को हुआ था।
Q. मुंशी प्रेमचंद जी की प्रमुख रचनाएँ कौन कौन सी हैं ?
मुंशी प्रेमचंद जी की प्रमुख रचनाएँ सेवासदन, गोदान, गबन, रंगभूमि, कर्मभूमि, मानसरोवर, नमक का दरोगा इत्यादि थी।
अंतिम शब्दों में ( Munshi Premchand biography in hindi )
दोस्तों आज के इस लेख में हमने आपको उपन्यास के सम्राट मुंशी प्रेमचंद के जीवन ( Munshi Premchand biography in hindi ) के बारे में बताया है किस तरह साधारण परिवार में जन्मे मुंशी प्रेमचंद संघर्षों के बाद भी हिंदी साहित्य में इतने बड़े कवि बन गए हमारे द्वारा दी गई.
मुंशी प्रेमचंद के बारे में सभी जानकारी आपको अच्छी लगी होगी आशा करते हैं इसी प्रकार की और भी जानकारी प्राप्त करने के लिए आप हमें कमेंट बॉक्स में कमेंट कर सकते हैं यह सब जानकारी आप अपने मित्रों को जरूर शेयर करें.
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