मदर टेरेसा जीवन परिचय | Mother Teresa Biography In Hindi
मदर टेरेसा का जीवन परिचय, बायोग्राफी, जन्म, मृत्यु, परिवार, शिक्षा, पुरस्कार ( Mother Teresa Biography, birth, death, Family, Education, Awards )
नमस्कार दोस्तों, आज इस लेख में हम आपको ऐसी महान दयावान महिला के बारे में बताने जा रहे हैं जिसको पढ़ने के बाद आपके मन में भी करुणा और दया का भाव जागृत होगा ”कहते हैं” इस संसार में अपने लिए तो सब जीते हैं लेकिन अपने स्वार्थ को छोड़कर दूसरों के लिए जीता है वही महान व्यक्ति कहलाता है और मदर टेरेसा ऐसे इंसानों में से एक थी.
ऐसे महान व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन एक आदर्श बन जाता है। जिनकी मृत्यु के बाद भी कई लोग उन आदर्शों पर चलकर अपना जीवन जीते हैं। जिन्हें मरने के बाद भी लोग उतने ही सम्मान और इज्जत से याद करते हैं। अब तक तो आप समझ ही गए होंगे, कि हम किसकी बात कर रहे हैं वह भारत की नहीं थी। लेकिन उनके हृदय में भारत के लोगों के लिए अपार प्रेम था। इस प्रेम के कारण ही वह भारत में ही बस गई और यहां के लोगों के लिए उन्होंने अभूतपूर्व कार्य किए।
दोस्तों हम बात कर रहे हैं, मदर टेरेसा की जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन दूसरों की सेवा में ही न्योछावर कर दिया है मदर टेरेसा दया करुणा निस्वार्थ प्रेम की एक ऐसी मूर्ति थी जो केवल एक व्यक्ति के लिए नहीं बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए जो गरीब लाचार दुखी और अपने जीवन में अकेले था।
उन सभी के लिए उनके ह्रदय में अपार प्रेम था। महज 18 वर्ष की उम्र में मदर टेरेसा नन बन गई और यहीं से उन्होंने अपने जीवन को एक नई दिशा दी। यदि आप मदर टेरेसा के संपूर्ण जीवन के बारे में जानना चाहते हैं तो इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।
Table of Contents
मदर टेरेसा जीवन परिचय | Mother Teresa Biography In Hindi
नाम | मदर टेरेसा |
पूरा नाम | अग्नेसा गोन्झा बोजाक्सीहु |
जन्म | 26 अगस्त 1910 |
जन्म स्थान | उत्तरी मैसेडोनिया ( स्कोप्जे ) |
बालों का रंग | सफेद |
आंखों का रंग | भूरे रंग की |
पेशा | कैथोलिक नन |
उम्र | 87 साल |
मृत्यु | अंगो का काम करना बंद कर देना |
मृत्यु का दिन | 5 सितंबर 1997 |
नागरिकता | जर्मन |
धर्म | कैथलिक |
स्कूल | प्राइवेट कैथोलिक स्कूल |
मदर टेरेसा का परिवार (Mother teresa Family )
नाम ( Name ) | मदर टेरेसा |
माता का नाम ( Mother Name ) | निकोला बोजाक्सीहु |
पिता का नाम ( Father Name ) | ड्रैनाफाइल बोजाक्सीहु |
भाई का नाम ( Brother Name ) | 1 बहन (नाम ज्ञात नहीं |
बहन का नाम (Sister Name ) | 1 भाई (नाम ज्ञात नहीं ) |
मदर टेरेसा का जन्म और परिवार ( Mother Teresa birth )
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मेसिडोनिया में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। इनका नाम अगनेस गोंझा बोयाजीजू था। इनके पिता का नाम निकोला बोयाजू था। जो एक साधारण से व्यापारी थे इनके पिता बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे।
मदर टेरेसा के पिता यीशु के अनुयाई थे। यह हमेशा अपने घर के पास वाले चर्च में जाया करते थे। इनकी माता का नाम द्राना वोयाजू था। सन 1919 में इनके पिता की मृत्यु हो गई थी, जब मदर टेरेसा महज 8 वर्ष की थी। उसके बाद इनकी लालन-पालन की पूरी जिम्मेदारी इनकी माता के ऊपर आ गई थी और उन्होंने ही मदर टेरेसा को बड़ा किया था।
मदर टेरेसा अपने पांच भाई बहनों में सबसे छोटी थी। पिता की मृत्यु के बाद मदर टेरेसा का परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था। परंतु उनकी मां ने हमेशा इन्हें मिल बांट कर खाने की शिक्षा दी बहुत ही सरल स्वभाव की टेरेसा सहज ही मां से पूछ बैठती थी की-
मां हमें किसके साथ मिल बैठकर खाना खाना चाहिए, बे कौन लोग हैं? क्या हमारे रिश्तेदारों के साथ? तब उनकी मां उनसे कहती थी, नहीं बेटा जिसे इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है उसके साथ मिल बैठकर खाना चाहिए. उनकी मां की यह बात टेरेसा के हृदय को छू गई और उन्होंने अपनी मां कही गई बातों को ही अपना जीवन बना लिया और उन शब्दों पर चलकर मदर टेरेसा बन गई।
मदर टेरेसा की शिक्षा ( Mother Teresa Education)
मदर टेरेसा एक सुंदर और मेहनती लड़की थी। मदर टेरेसा को पढ़ाई के साथ- साथ गाने का भी बहुत शौक था। इनकी आवाज इतनी सुरीली थी, कि मानो कंठ में “सरस्वती ही विराजमान” हो वे गिरिजाघर में यीशु की महिमा गाने के लिए अपनी मां और बहन के साथ जाया करती थी।
जिसके बाद उनका मन बदल गया और उन्हें अनुभव हो गया, कि मुझे अपना सारा जीवन मानव सेवा में लगाना है। 1928 में मात्र 18 साल की उम्र में मदर टेरेसा ने बपतिस्मा लिया और क्राइस्ट को अपना लिया इसके बाद वह कभी घर नहीं आई,अपनी मां और बहन से मिलने के लिए वे डबलिन में जाकर रहने लगी।
नन बनने के बाद उनका एक नया जन्म हुआ और उन्हें नया नाम मिला सिस्टर मेरी टेरेसा यही कि एक इंस्टिट्यूट से उन्होंने नन की ट्रेनिंग ली थी। उसके बाद वह आयरलैंड गई अंग्रेजी सीखने के लिए अंग्रेजी सीखना इसलिए जरूरी था क्योंकि लोरेटो सिस्टर इसी भाषा में बच्चों को पढ़ाती थी।
भारत आई मदर टेरेसा
6 जनवरी 1929 मदर टेरेसा आयरलैंड से भारत के कोलकाता शहर मैं लोरेटो कॉन्वेंट पहुंची। टेरेसा को अनुशासन में रहना पसंद था. बच्चे उनसे बहुत प्रेम करते थे।1944 में टेरेसा हेडमिस्ट्रेस बन गई. उनके चारों तरफ फैली गरीबी दर्द और लाचारी से उनका मन बहुत अशांत हो गया था।
1947 में जब कोलकाता मैं अकाल पड़ गया और लाखों की तादाद में मौत हुई लोग भुखमरी से बेहाल हो गए। उसी समय 1946 में हिंदू और मुस्लिम दंगों ने उस शहर को और लाचार और बेबस बना दिया।
मदर टेरेसा के जीवन का नया मोड़
10 सितंबर 1946 को मदर टेरेसा के जीवन में एक नया मोड़ लिया जिसके बाद उनका जीवन ही बदल गया इस दिन बे कोलकाता से दार्जिलिंग कुछ काम के लिए जा रही थी। “तभी यीशु ने उनसे बात कर कहां की शिक्षण का काम छोड़ो तुम इसके लिए नहीं बनी हो” यहीं रहो और कोलकाता के गरीब लाचार बीमार लोगों की सेवा करो।
लेकिन मदर टेरेसा सरकारी अनुमति के बिना कान्वेंट नहीं छोड़ सकती थी। क्योंकि उन्होंने आज्ञाकारीता का व्रत ले लिया था। इसके बाद उन्हें 1948 में परमिशन मिल गई और उन्होंने तुरंत ही स्कूल छोड़ दिया।
इसके बाद उन्होंने पटना के होली फैमिली हॉस्पिटल से नर्सिंग की ट्रेनिंग पूरी कर वापस कोलकाता आकर गरीब लोगों की सेवा करने लगी।
होली फैमिली हॉस्पिटल नर्सिंग ट्रेनिंग सेंटर जो कि पटना में स्थित है इस नर्सिंग कोर्स को करने के बाद मदर टेरेसा वापस कोलकाता आकर गरीब लोगों की सेवा करने लगी.
मदर टेरेसा ने अब सफेद रंग की नीली धारी वाली साड़ी को अपना लिया और पूरा जीवन इसी रूप में दिखाई दी टेरेसा ने अनाथ बच्चों के लिए एक अनाथालय बनाया दूसरे गिरजाघर भी उनकी मदद करने के लिए आगे बढ़ने लगे थे।
इस अनाथालय को बनाने के लिए उन्हें बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा क्योंकि उनके पास कोई आर्थिक मदद नहीं थी। वह लोरेटो छोड़ चुकी थी अपना पेट भरने के लिए भी उन्हें लोगों के सामने हाथ फैलाना पड़ता था। कभी-कभी उनके मन में उथल-पुथल होती थी और वह सोचती थी। कि स्कूल वापस लौट जाएं परंतु उन्होंने हार ना मानते हुए अपना जीवन यापन किया था।
क्योंकि मदर टेरेसा को अपने प्रभु पर पूरा विश्वास था। जिस भगवान ने उन्हें यह काम प्रारंभ करने का बोला था वह उसे पूरा भी करेगा इसलिए वह अपनी जीवन की कठिनाइयों की चिंता ना करते हुए अपने काम को पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करती रही है।
मदर टेरेसा कहां रहती थीं ( where mother teresa From )
26 अगस्त 1910 को मैसोडोनिया की राजधानी स्कॉप्जे मैं मदर टेरेसा का जन्म हुआ था। अल्बानिया इस देश की भाषा है पहले मैसेडोनिया को यूगोस्लाविया के नाम से जाना जाता था। “अगनेस गोंझा बोयाजिजू” मदर टेरेसा का वास्तविक नाम था। मदर टेरेसा ने में भारत में रहकर लोगों की सेवा की और एक महान व्यक्ति के रूप में पूरे दुनिया में पहचानी गई।
मिशनरी ऑफ चैरिटी (Missionaries of charity history )
मदर टेरेसा के बहुत अधिक प्रयास करने के बाद आखिरकार 7 अक्टूबर 1950 को उन्हें वेटिकन से मशीनरी ऑफ चैरिटी की स्थापना की अनुमति मिल गई। इस संस्था के वॉलिंटियर संत मैरी स्कूल के एक अध्यापक ही थे। जो कि मानव की सेवाभाव से इस संस्था से जुड़े थे।
जब इस संस्था की स्थापना की गई थी, तब इसमें मात्र 12 लोग ही काम करते थे. परंतु आज 4000 से ज्यादा सिस्टर दुनिया भर में असहाय बेसहारा गरीब लोगों की मदद कर रही हैं। इस संस्था द्वारा कई अनाथालय नर्सिंग होम और वृद्धाश्रम बनाए गए हैं।
इस संस्था का मुख्य उद्देश्य भूखे, लंगड़े, लूले, अंधे, चर्म रोग, से पीड़ित बेघरों और ऐसे लोग जिनका दुनिया में कोई नहीं है उनकी मदद कर उनको सहारा देना था।
उस समय कोलकाता में छुआ-छूत की बीमारी चरम सीमा तक फैल चुकी थी और समाज से ऐसे लोगों को निकाला जा रहा था। तभी उन लोगों के लिए मदर टेरेसा मसीहा बनकर सामने आई और गरीबो नंगो को सहारा दिया और सभी को भरपेट भोजन कराया।
मदर टेरेसा ने रोम पोप जॉन पाल 6 से 1965 में अपनी मिशनरी संस्था को दूसरे देशों में शुरू करने की अनुमति मांगी और उन्हें अनुमति मिल गई। पहली मिशनरी संस्था भारत के बहार वेनेजुएला मैं शुरू हुई वर्तमान समय में 100 से ज्यादा देशों में मिशनरी ऑफ चैरिटी संस्था है।
यदि व्यक्ति अपने जीवन में कड़ी मेहनत और लगन से काम करता है तो वह जीवन में कभी असफल नहीं होता मदर टेरेसा के साथ सच हुई .जब वे भारत आए थी तब उन्होंने गरीब और बेसहारा सड़क के किनारे पड़ेअसहाय लोगों की दयनीय स्थिति को अपनी आंखों से देखा तभी उनका मन इतना द्रवित हो गया कि वह वापस जाने का साहस ही नहीं जुटा पाई और जन सेवा करने का अनवरत व्रत धारण कर लिया।
मदर टेरेसा को मिलने वाले पुरस्कार ( Mother Teresa Awards)
1 | 1962 | पद्म श्री ( भारत सरकार ) |
2 | 1980 | भारत रत्न ( भारत सरकार ) |
3 | 1985 | ऑफ़ फ्रीडम अवार्ड ( अमेरिका सरकार ) |
4 | 1975 | नोबल पुरुस्कार |
5 | 2003 | ब्लेस्ड टेरेसा ऑफ़ कलकत्ता कहकर सम्मानित |
6 | 1979 | संरक्षक पदक |
7 | 1995 | महारानी जेलेना का भव्य आदेश |
8 | 1976 | टेरिस अवार्ड में पेसेम |
9 | 1985 | स्वतंत्रता का राष्ट्रपति पदक |
10 | 1973 | टेम्पलटन पुरस्का |
11 | 1978 | शांति और बंधुत्व के लिए बलजान पुरस्कार |
मदर टेरेसा उपाधि
देशिकोत्तम | विश्व भारती विद्यालय |
डोक्टोरेट | अमेरिका के कैथोलिक विश्वविद्यालय |
आईर ओफ द ब्रिटिश इम्पायर | ब्रिटेन |
कोलकाता की धन्य | पोप जॉन पॉल द्वितीय |
डी-लिट् | बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय |
संत | वेटिकन सिटी में पोप फ्रांसिस ने |
मदर टेरेसा पर हुए विवाद
दोस्तों कहा जाता है कि कोई भी जीवन में कितना ही अच्छा इंसान क्यों ना हो यदि उसे सफलता मिल जाती है तो विवाद भी उसके पीछे अपने आप ही चले आते हैं। इतने महान कार्य करने के बाद भी मदर टेरेसा के जीवन और उनके कामों को विवादों भी मैं लाकर खड़ा कर दिया गया।
उनकी दया करुणा और निर्मल भाव को लोग गलत समझ कर उन पर आरोप लगाने लगे कि वह ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए भारत आई है वह एक अच्छा इंसान बन कर और लोगों की मदद कर उनके धर्म को परिवर्तित करने का प्रयास कर रही हैं।
परंतु मदर टेरेसा ने कभी भी लोगों की बात पर ध्यान नहीं दिया और वह पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपने काम को करती रही क्योंकि “प्रभु यीशु ने उनसे पहले ही कह दिया था कि मैं तुम्हें जो काम दे रहा हूं वह बहुत कठिनाइयों भरा है” तुम्हें हर कठिनाई को पार करके अपने काम को पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ करना है।
मदर टेरेसा का निधन ( Mother Teresa death )
मदर टेरेसा ने अपने जीवन भर लोगों की मदद की और धीरे-धीरे उनकी उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनका स्वास्थ्य भी लगातार बिगड़ता गया टेरेसा को किडनी की बीमारी थी।
1983 में जब वे रोम में पोप जॉन द्वितीय से मिलने गई उसके बाद 73 वर्ष की उम्र में उन्हें पहला दिल का दौरा पड़ा इतनी तबीयत खराब होने के बाद भी भी बिना रुके मिशनरी से जुड़े सभी कामों को करती रही।
तभी 1989 में उन्हें दूसरा दिल का दौरा पड़ा और उन्हें कृत्रिम पेसमेकर लगाया गया। इसके बाद उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ते रहने लगा और 13 मार्च 1997 उन्होंने मिशनरी ऑफ चैरिटी की मुखिया के पद को छोड़ दिया।
इनके बाद इस पद के लिए निर्मला जोशी को चुना गया 5 सितंबर 1997 को मदर टेरेसा का कोलकाता में ही निधन हो गया।
Q. मदर टेरेसा का उपनाम क्या है?
मदर टेरेसा को मदर ऑफ द वर्ल्ड के नाम से भी जाना जाता है
Q. मदर टेरेसा का मूल मंत्र क्या है?
गरीबों, असहायों,अनाथों तथा रोगियों की सेवा करना ही मदर टेरेसा का मूल मंत्र है
Q. मदर टेरेसा भारत क्यों आई?
मदर टेरेसा 1920 में पहली बार बंगाल के शहर कोलकाता आई थीं. मानव सेवा के लिए भारत आई थी
Q. मदर टेरेसा के जीवन से क्या संदेश मिलता है?
मदर टेरेसा के जीवन का संदेश मिलता है वह कहती है जीवन दूसरों के लिए नहीं दिया तो वह जीवन किसी काम का नहीं है
Q. मदर टेरेसा ने किस संस्था की स्थापना की थी ?
मिशनरी ऑफ चैरिटी संस्था
Q. मदर टेरेसा कहां से थीं ?
मेसोडोनिया के स्कॉप्जे शहर से
अंतिम शब्दों में
दोस्तों इस लेख में हमने आपको ( Mother Teresa Biography In Hindi ) मदर टेरेसा की जीवन के बारे में जानकारी दी है इस लेख में बताया अलेबियन भाषा में गोंझा का अर्थ “फूल की कली” होता है हमने अपने लेख में इस फूल की कली का संपूर्ण जीवन बताया है।
उन्होंने कैसे अपने जीवन मैं संघर्षों को पार करते हुए मानव के लिए एक सरल ह्रदय और उदारता के साथ असहाय लोगों की मदद की है यदि आपको हमारा लेख पसंद आया हो तो अपने दोस्तों को शेयर करें यह लेख हमेशा आपको मदर टेरेसा द्वारा किए गए कार्यों की सभी जानकारियां देगा।
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