मीराबाई का जीवन परिचय, जाने कैसे बनी कृष्ण भक्त | Mirabai ka Jivan Parichay

mirabai ka jeevan parichay

Mirabai ka Jivan Parichay:  नमस्कार दोस्तों, आज इसलिए हम आपको एक ऐसी मध्यकालीन हिंदू आध्यात्मिक कवियत्री के बारे में बताने जा रहे हैं। जो कृष्ण की  परम भक्त थी और उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन कृष्ण की भक्ति को ही समर्पित कर दिया था।

जिन्होंने सामान्य लोगों को भगवान तक पहुंचने के लिए भजन और स्तुति का मार्ग दिया है जी हां दोस्तों हम बात कर रहे हैं। राजस्थान की राधा कहीं जाने वाली मीराबाई की जिन्होंने कृष्ण की भक्ति उस समय भी नहीं छोड़ी थी जब उन्हें जहर दिया जा रहा था उन्होंने जहर का सेवन भी उसी भांति प्यार से किया था। 

जिस प्रकार कोई साधारण मनुष्य अपने खाने का सेवन करता है उन्होंने उस समय समाज की कुरीतियों से लड़ते हुए कैसे अपने जीवन को संभाला होगा कृष्ण को पति मानकर उनके लिए ही उन्होंने अपना सर्वस्व निछावर कर दिया था।

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इसके लिए न जाने उन्हें कितनी यातनाएं सहनी पढ़ी होंगी उनकी भक्ति को राजघराने में अनुकूल नहीं माना जाता था। इसलिए समय-समय पर उन पर बहुत से अत्याचार किए जाते थे भक्ति काल में भगवान श्रीकृष्ण के लिए हजारों ऐसी कविताएं लिखी गई हैं जिनका संबंध मीराबाई से है।

परंतु कुछ विद्वानों का ऐसा मानना है कि इनमें से कुछ कविताएं मीराबाई ने लिखी है और कुछ 18वीं शताब्दी के संतो द्वारा लिखी गई है कहा जाता है कि बचपन में उन्हें एक साधु ने कृष्ण भगवान की मूर्ति दी थी। 

इसके साथ ही उन्होंने अपने जीवन में कृष्ण भक्ति की शुरुआत की और उनकी आराधना करते हुए दिव्य प्रेम को प्राप्त हो गई। यदि आप ऐसी महान कवियत्री के बारे में और अधिक जानना चाहते हैं तो इस  लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।

Table of Contents

मीराबाई का जीवन परिचय | Mirabai ka Jivan Parichay

नाममीराबाई (Mirabai)
जन्म1498 ई., कुड़की ग्राम, मेड़ता
पिता का नामरतनसिंह राठौड़
माता का नामवीर कुमारी
पति का नामराणा भोजराज सिंह
धर्महिंदू
पुत्री का नामयह ज्ञात नहीं है
पुत्र का नामयह ज्ञात नहीं है
नागरिकताभारतीय
मृत्यु1547 ईस्वी, रणछोड़ मंदिर डाकोर, 
धर्महिन्दू

मीराबाई का जन्म (Mirabai ka Janam)

कृष्ण की अनन्य भक्त मीरा का जन्म भारत के राज्य राजस्थान में 1498 मेड़ता के पास एक छोटे से गांव  कुडकी में हुआ था। मीराबाई एक सा ही संपन्न परिवार से थी और एक हिंदू परिवार से संबंध रखती थी।

मीराबाई का परिवार (Mirabai Ka Parivar)

मीरा के पिता का नाम रतन सिंह राठौड़ था जोकि राजपूत रियासत के शासक रहा करते थे इनकी माता का नाम वीरकुमारी था अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी बहुत छोटी उम्र में ही माता का निधन हो गया था।

तभी से इन्होंने अपने जीवन में बहुत कष्ट उठाए हैं क्योंकि जब वह 2 वर्ष की थी तभी उनकी मां इस दुनिया को छोड़ कर चली गई। इसलिए इनके दादा राव दूदा नेपालन पोषण के लिए इन्हें मेड़ता ले आए इनकी दादा जी एक महान शासक होने के साथ-साथ ईश्वर प्रेमी भी थे।

जिसके कारण के घर साधु संतों का आना जाना लगा रहता था इसकी कारण ही मीरा को बचपन से ही ईश्वर के प्रति लगाव हो गया था उनके दादाजी ने उन्हें बचपन से  ही उन्हें घुड़सवारी तलवारबाजी आध्यात्मिक ज्ञान गीत संगीत आदि की शिक्षा दे दी थी।

मीराबाई बचपन से ही काफी प्रखर बुद्धि की रही हैं और जो बात उन्हें एक बार समझाई जाती थी। उस बात को वह अपने जीवन में कभी भी नहीं भूली इसीलिए तो वह कृष्ण की अनन्य भक्त बन गई।

मीराबाई का वैवाहिक जीवन (Mirabai Ki shadi)

मीरा का विवाह मात्र तेरा 14 साल की उम्र में ही  मेवाड़ के राजा राणा सांगा के पुत्र राजकुमार भोजराज के साथ सन 1516 में किया गया था इनका विवाह राजपूत परंपरागत तरीके से किया गया था कि पति की उम्र से थोड़ी ज्यादा ही थी।

1518 में जब भोजराज का दिल्ली सल्तनत के शासकों के साथ युद्ध हुआ तो इसी कारण 15 से 21 ईसवी में उनकी मौत हो गई पति की मृत्यु के कुछ दिनों बाद ही उनकी ससुर भी मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के हाथ युद्ध में मारे गए।

कई पौराणिक कथाओं में ऐसा कहा जाता है कि पति की मृत्यु के बाद मीरा को  सती करवाने का प्रयास किया गया किंतु वह इस जोहर के लिए तैयार नहीं हुई और संसार से विरक्त होते हुए साधु-संतों की संगति में अपना समय गुजारने लगी और कृष्ण की भक्ति मैं रंग गई और मीरा कृष्ण को ही अपने पति के रूप में मानने लगी।

मीरा मीराबाई की कृष्ण भक्ति (Meera Mirabai’s devotion to Krishna)

मीरा के पति की मृत्यु के बाद इनकी भक्ति बहुत ज्यादा बढ़ने लगी थी और मीरा अधिकतर समय मंदिरों में जाकर भगवान कृष्ण के सामने नाचती रहती थी परंतु मीरा का इस तरह कृष्ण भक्ति करना और कृष्ण के लिए समर्पित हो जाना उनके परिवार को अच्छा नहीं लगता था।

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एक बार मीराबाई से उनकी कुलदेवी देवी दुर्गा की पूजा करने को कहा गया परंतु मीरा ने यह कहकर पूजा करने से मना कर दिया कि मेरा तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोई जिसके कारण उन्हें कई प्रताड़नाए दी गई और कई बार तो उन्हें मारने के लिए जहर भी दिया गया।

परंतु उन्होंने किसी से कुछ ना कहते हुए अपनी कृष्ण भक्ति में ही लीन रहने लगी कुछ दिनों बाद 1533 के करीब उनकी दादाजी ने मेड़ता बुला लिया था और कुछ दिनों बाद ही चित्तौड़ पर गुजरात के बहादुर शाह ने कब्जा कर लिया था।

इस युद्ध में चित्तौड़ के राजा विक्रमादित्य मारे गए थे जिसके कारण हजारों महिलाओं ने जोहर कर लिया था  इसके बाद जोधपुर के राजा ने 1538 में राव मालदेव की मेड़ता पर भी अधिकार कर लिया था जिसके कारण  राव मालदेव ने अजमेर की राजा से शरण ली थी।

मीरा तभी कृष्ण भक्ति में लीन होते हुए ब्रज की यात्रा पर निकल चुकी थी यात्रा के दौरान जब मीराबाई 1539 में वृंदावन पहुंची तो वहां पर रूप गोस्वामी से मिली वृंदावन में रहने के बाद मीरा द्वारिका चली गई थी।

उस समय  मीराबाई  को एक विद्रोही के रूप में देखा जाता था क्योंकि मीरा में विधवा और राजपूत महारानी होने की एक भी गुण नहीं थी। वह साधु संतों की तरह इधर से उधर कृष्ण की भक्ति के गीत गाते फिरते रहती थी जो कि राज्य शाही परिवार के विरुद्ध थे।

मीराबाई और अकबर की भेंट (Mirabai and Akbar’s meeting)

मीराबाई ने बचपन से ही कृष्ण भक्ति मेलीन रहते हुए अपने संपूर्ण जीवन को उनके नाम समर्पित कर दिया था परंतु उनकी ससुराल वालों को मीरा का कृष्ण के लिए नाचना गाना बिल्कुल भी रास नहीं आता था कहा जाता है कि जब मीरा मंदिर जाती थी। तो कृष्ण की मूर्ति के साथ घंटा तक नाचती रहती थी और यहीं से उन्होंने हजार भजनों को रच दिया था। 

मीरा की ख्याति धीरे पूरे भारत में प्रसिद्ध होने लगी थी और इस समय की मुगल शासक अकबर के कानों में जब यह बात पड़ी तो वह भी मीरा से मिलना चाहते थे क्योंकि अकबर एक ऐसा शासक था जिसे हर धर्म के बारे में जानने का उत्साह रहता था।

परंतु अकबर का मीरा से मिलना इतना आसान नहीं था क्योंकि मुगल साम्राज्य का शासक होने के कारण अकबर और मीरा के पति राजा भोज की बिल्कुल भी नहीं बनती थी परंतु अकबर ने तो सोच लिया था कि अब हमीरा से मिलकर ही रहेंगे।

इसलिए उन्होंने राजा की भांति नहीं बल्कि अपना बीज बदलकर एक आम इंसान की तरह मीरा से भेंट की जब मीरा एक मंदिर में कृष्ण के भजन गा रही थी तो उस मंदिर की सभी लोग मंत्रमुग्ध हो गए और अकबर भी खुद को मंत्रमुग्ध होने से रोक नहीं पाए।

इसीलिए उन्होंने इतनी सुंदर भजन के लिए मीरा को अपने गले का हार उतार कर दे दिया इसे देखकर सभी लोग आश्चर्य में पड़ गए। जिससे कि लोग उन्हें शक की निगाह से देखने लगे और बहुत दिनों तक इस बात की छानबीन चलती रहेगी वह लोग कौन थे। तब पता चला कि वह अकबर और उनका नवरत्नों में से एक तानसेन उनके साथ मीरा से भेंट करने के लिए आए थे।

मीराबाई ने जीव गोस्वामी से की भेंट (Mirabai met Jeev Goswami)

एक पौराणिक कथा के अनुसार जब मीराबाई वृंदावन में भक्त शिरोमणि जीत गोस्वामी के दर्शन के लिए पहुंची  परंतु गोस्वामी जी सच्चे साधु होने के कारण स्त्रियों को देखना भी उचित नहीं समझते थे। 

इसलिए उन्होंने मीराबाई से मिलने के लिए मना कर दिया कि हम स्त्रियों से नहीं मिलते इस पर मीराबाई ने जवाब देते हुए कहा कि वृंदावन में तो सिर्फ एक ही पुरुष श्री कृष्ण है।

परंतु मैंने यहां आकर जाना कि उनका एक और प्रतिद्वंदी वृंदावन में पैदा हो गया है जैसे ही मीरा के मधुर और मार्मिक वचन गोस्वामी के कानों में पड़े वह नंगे पैर ही बाहर निकल आए और बड़े प्रेम और आदर के साथ मीराबाई से मिले इस कथा का उल्लेख सर्वप्रथम प्रियादास की कविताओं में मिलता है।

मीराबाई की रचनाएँ 

1नरसी जी का मायरा
2गीत गोविंद
3मीरा पद्मावली
4राग सोरठा
5राग गोविंद

मीराबाई पर बनी फिल्म (film on meerabai)

भारत के प्रसिद्ध गायक गुलजार ने मीराबाई के जीवन पर एक हिंदी फिल्म का निर्माण 1979 में किया था इस फिल्म में मुख्य किरदार हेमा मालिनी द्वारा किया गया था प्रसिद्ध सितार वादक के रूप में पहचाने वाले पंडित रविशंकर ने कुछ ही गिनी जूनी फिल्मों में अपना संगीत दिया है और मीराबाई फिल्म में इन्हीं ने संगीत प्रदान किया था।

इनका संगीत इतना मधुर था कि लोग सुनकर ही मंत्रमुग्ध हो जाया करते थे गुलजार चाहते थे कि फिल्म में पार्श्व गायिका लता मंगेशकर मीराबाई के पदों को सुनाएं।

परंतु लता मंगेशकर ने अपने भाई ह्रदय मंगेशकर के साथ मीरा की पदों का गायन किया था। इस कारण रविशंकर नई फिल्में जयराम के द्वारा मीरा के पदों का गायन करवाया था फिल्म के सभी गीत विभिन्न रागों पर आधारित हैं।

मीराबाई को मारने की साजिश (Conspiracy to kill Meerabai)

मीराबाई कृष्ण की भक्ति में इतनी ज्यादा लीन हो चुकी थी की इनके ससुराल वाले इनकी हरकतों से तंग आ चुके थे इसीलिए उन्होंने कई बार मीरा पर बहुत से अत्याचार किए।

परंतु फिर भी मीरा का कृष्ण के प्रति लगाव कम ना हुआ। और उन्हें कई बार मारने की साजिश भी की गई परंतु कृष्ण की भक्ति मैं उन्हें कभी किसी प्रकार की कोई चोट ही नहीं पहुंचने दी।

मीरा को जहर दिया गया 

कई विद्वानों के अनुसार एक बार मीरा को उनके ससुराल वालों ने कृष्ण को भोग लगाने के लिए जहर का प्याला भेजा जिसे मीरा ने कृष्ण को भोग लगाने के बाद खुद  बी पी लिया था। परंतु कृष्ण के प्रति उनका प्रेम और निश्चल भक्ति के कारण विष का प्याला भी अमृत के समान हो गया था।

मीराबाई के लिए फूलों की टोकरी में भेजा गया था सांप

एक प्रचलित कथा के अनुसार यह भ्रांति फैली है कि एक बार जब उनकी ससुराल वालों ने कृष्ण की पूजन के लिए मीरा के हाथों में एक टोकरी थमाई थी उसके अंदर उन्होंने एक साथ रख दिया था परंतु जैसे ही मीरा ने वह  टोकरी खोली  तो वह सांप  फूलों  की माला के रूप में परिवर्तित हो गया था और जैसे ही उन लोगों ने यह सब देखा तो उनके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा

मीरा के लिए राजा विक्रम ने भेजी कांटों की सेज 

एक बार राजा विक्रम सिंह ने उन्हें मारने के लिए कांटों से भरा बिस्तर भेजा और उनसे कहा कि यदि तुम कृष्ण की इतनी ही बड़ी भक्त हो तो इस बिस्तर पर सोकर दिखाओ तो उन्होंने बिना किसी सवाल जवाब की उस बिस्तर पर सो गई।

वह बिस्तर कांटों की सेज से कब फूलों की डालियों में बदल गया किसी को कुछ पता ही नहीं चला और उनके बार-बार प्रयास करने पर भी वह मीरा को मारना सके कई बार तो ऐसा कहा जाता है कि  कृष्ण ने उन्हें साक्षात दर्शन देकर बचाया था।

मीराबाई की मृत्यु (Mirabai Ki Death)

दोस्तों कहा जाता है कि उदय सिंह राजा बने तो उन्हें इस बात की जानकारी लगी कि उनके परिवार ने मीरा के साथ कितना अत्याचार किया है और वह बहुत निराश हो गए।

उन्होंने अपने राज्य की कुछ ब्राह्मणों और साधु-संतों से आग्रह किया कि वह मीराबाई को वापस ले आए और राजा के आग्रह करने पर साधु संत और ब्राह्मण मीरा को वापस लाने के लिए द्वारिका पहुंचे। 

परंतु जब मीराबाई वापस आने के लिए तैयार नहीं हुई तो उन्होंने जिद करने लगे यदि आप हमारे साथ नहीं जाएंगी तो हम भी वापस नहीं जाएंगे।

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तब मीराबाई ने कहा कि कृष्ण जन्माष्टमी का महोत्सव हो जाए फिर हम लौट कर चलेंगे और जन्माष्टमी के दिन जब सभी साधु संत कृष्ण की भक्ति में लगे थे तब मीराबाई नाचते-नाचते रणछोड़राय जीके मंदिर में गर्भ ग्रह के अंदर चली गई और उनकी अंदर जाते ही उस मंदिर के पट बंद हो गए।

परंतु जब पुजारियों ने उस मंदिर के पट खोले तो मीरा के चीर मूर्ति के चारों और लपटा मिला था और मूर्ति बहुत ज्यादा प्रकाशमान हो रही थी परंतु मीरा का पार्थिव शरीर कहीं नहीं पाया गया ऐसा कहा जाता है कि उनका उनकी प्रियतम श्री कृष्ण से मिलन हो चुका थाऔर 1560 ईसवी में  मीरा कृष्ण में समा गई।

Q. मीराबाई का जन्म कहां हुआ था

मीराबाई का जन्म कुड़की ग्राम, मेड़ता हुआ था

Q. मीराबाई के दादाजी का नाम क्या था?

 मीराबाई के दादाजी का नाम मेड़ता के राव दूदा।था

Q. मीराबाई का राणा सांगा के साथ क्या रिश्ता था?

 मीराबाई का महाराणा सांगा सांगा से शत्रु का रिश्ता था

Q.  मीराबाई की शादी कितने वर्ष की उम्र में हुई थी?

 मीराबाई के 18 वर्ष में थे तब उनकी शादी हो गई थी

Q. मीराबाई का जन्म कब हुआ था?

मीराबाई का जन्म 1498 ई. हुआ था

आज आपने देखा

दोस्तों इस लेख में हमने आपको मीरा बाई के जीवन परिचय (Mirabai ka Jivan Parichay)  के बारे में विस्तार से सभी जानकारी दी है मीराबाई के कृष्ण भक्त थे उन्होंने अपना पूरा जीवन देश भक्ति में ही गुजार दिया था।

वह भारत की एक ऐसे ऐसे संत हुआ करते थे जिन्होंने पूरे भारत में अपनी अलग पहचान बनाई थी उनके जीवन से जुड़ी हुई हर घटना को हमने आपके लिए साझा किया है। 

दोस्तों आशा करते हैं हमारे द्वारा दी गई जानकारी से आप खुश होंगे और भी जानकारी प्राप्त करने के लिए हमें कमेंट बॉक्स में कमेंट करें और यह जानकारी आप अपने मित्रों को जरूर शेयर करें धन्यवाद।

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