स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय,जाने कैसे बने अध्यात्मिक | Swami Vivekananda Biography in Hindi
नमस्कार दोस्तों, आज इस लेख में हम आपको ऐसे महान व्यक्ति के बारे में बताने जा रहे हैं। जिसके बारे में जितना कहा जाए उतना ही कम है। उनका जन्म ही अध्यात्म के प्रचार प्रसार के लिए हुआ था उन्होंने अपने ज्ञान और सूझबूझ से आध्यात्मिक ज्ञान का परचम पूरे विश्व में फहराया और भारत को एक नई पहचान दिलाई।
दोस्तों हम बात कर रहे हैं स्वामी विवेकानंद की जिनका जन्म दिवस ही युवा दिवस के रुप में मनाया जाता है स्वामी जी का कहना था कि “उठो जागो और जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो रुको मत” इस तरह के महान विचारों वाले स्वामी विवेकानंद हमारे देश की महान हस्तियों में से एक है। स्वामी विवेकानंद ने ना केवल भारत के उपमहाद्वीप बल्कि संपूर्ण विश्व में घूम -घूम कर मानव की सेवा एवं मानव के हित के लिए कार्य किए।
स्वामी विवेकानंद हमेशा कर्म पर विश्वास रखने वाले महापुरुष थे। समाज में धर्म की आड़ में जो कुरीतियां चल रही थी। उन्होंने उन्हें खत्म कर समाज को एक नए रास्ते पर ले जाने का काम किया स्वामी विवेकानंद हमेशा परम गतिशीलता को महत्व देते थे वह कहते थे कि जीवन में कुछ भी करना असंभव नहीं है।
परंतु अनुशासन का होना बहुत जरूरी है वह योग और साधना में विश्वास रखते थे. वह कहते थे ध्यान और योग से वह हासिल किया जा सकता है जो मनुष्य चाहता है। उनके बारे में कहा जाता है कि वह जिस किताब को एक बार पढ़ लेते थे उसे जीवन में कभी नहीं भूलते थे।
स्वामी विवेकानंद भारत के युवाओं के लिए एक आदर्श है इनकी राह पर चलकर युवा अपने जीवन को सार्थक बना सकता है भारतीय परंपरा के महान संत स्वामी रामकृष्ण परमहंस उनके गुरु थे।
रामकृष्ण परमहंस जी के संपर्क में आने के बाद विवेकानंद जी ने मानव सेवा को ही अपना धर्म बना लिया था विवेकानंद जी ने हिंदू धर्म के उत्थान के लिए कई ऐसे काम किए जिसके कारण हिंदू सदैव उनके ऋणी रहेंगे।
आज किस आर्टिकल में हम आपको स्वामी विवेकानंद के जीवन के बारे में विस्तार से जानकारी बताएंगे. इसलिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।
Table of Contents
स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय| Swami Vivekananda Biography in Hindi
नाम | नरेन्द्र |
मठवासी बनने के बाद नाम | स्वामी विवेकानंद |
जन्म | 12 जनवरी 1963 |
जन्म स्थान | कोलकाता भारत |
मृत्यु | 4 जुलाई उन्नीस सौ दो |
मृत्यु का स्थान | पश्चिम बंगाल, भारत |
नागरिकता | भारतीय |
गुरु का नाम | रामकृष्ण परमहंस |
शिक्षा | बैचलर ऑफ आर्ट |
संस्थापक | रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ |
साहित्यकार | कर्म योग, भक्ति, राज योग |
स्वामी विवेकानंद का परिवार | Swami Vivekananda Family
नाम | स्वामी विवेकानंद |
पिताजी का नाम | विश्वनाथ दत्त |
माता जी का नाम | भुवनेश्वरी देवी |
भाई/ बहन का नाम | 9 |
गुरु का नाम | रामकृष्ण परमहंस |
स्वामी विवेकानंद का जन्म एवं परिवार | Swami Vivekananda birth
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता के एक संपन्न कायस्थ बंगाली परिवार में मकर सक्रांति के दिन हुआ था। जब विवेकानंद जी का जन्म हुआ था उस समय कोलकाता ब्रिटिश साम्राज्य की राजधानी थी।
स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था लेकिन प्यार से सभी उन्हें नरेंद्र के नाम से पुकारते थे उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था। जो कोलकाता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। इनकी वकालत की काफी चर्चे होते थे। वह फारसी और अंग्रेजी भाषा के भी अच्छे जानकार थे।
उनके दादा का नाम दुर्गाचरण दत्त था। जो कि संस्कृत और फारसी के महान विद्वान थे। नरेंद्र के दादाजी ने 25 वर्ष की उम्र में घर का त्याग कर सन्यास धारण कर लिया था। इनकी माता का नाम भुनेश्वरी देवी था। जो कि ग्रहणी थी। इनकी माता ईश्वर पर असीम विश्वास रखती थी। उनका अधिकतर समय भगवान शिव की पूजा अर्चना में ही निकलता था।
यह कुल मिलाकर नो भाई बहन थे। पिता के प्रगतिशील विचार और माता के धार्मिक आचरण थे। जिसके कारण बालक नरेंद्र की सोच और उनके व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ा जिसके कारण वह बाल्यकाल से ही अध्यात्म की ओर चल पड़े नरेंद्र का परिवार शिव भक्त था।
नरेंद्र नाथ बचपन में बहुत ही नटखट थे उन्हें संभालना उनके माता-पिता के लिए बहुत कठिन होता था कई बार उनकी माता गुस्से में कहती थी कि मैंने भगवान से अपने लिए एक पुत्र मांगा था।
लेकिन उन्होंने तो मुझे राक्षस दे दिया वे अपने दोस्तों और बड़ों के साथ भी शरारत करते थे। वह अपने गुरुजनों बड़े-बड़े कथावाचक और पंडितों से रामायण और महाभारत के ऐसे ऐसे सवाल किया करते थे जिनका जवाब देना उनके लिए मुश्किल हो जाता था। बचपन से ही उनके मन में ईश्वर को जानने की इच्छा थी।
स्वामी विवेकानंद का शिक्षा | Swami Vivekananda Education
सन 1871 मैं विश्वनाथ दत्त ने नरेंद्र का ईश्वर चंद्र विद्यासागर के मेट्रोपॉलिटन इंस्टिट्यूशन मैं एडमिशन करा दिया. जब वे महज 8 वर्ष के थे और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा यहीं से प्राप्त की 1877 मैं उनका परिवार अचानक किसी कारण से रायपुर चला गया.
जिसकी वजह से उनकी पढ़ाई बीच में छूट गई.1879 मैं उनका परिवार पुनः कोलकाता आ गया जब वह कोलकाता वापस आ गए तब नरेंद्र ने अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर दी और उन्होंने प्रेसिडेंट कॉलेज की एंट्रेंस परीक्षा दी और प्रेसिडेंट कॉलेज की एंट्रेंस परीक्षा में फर्स्ट डिवीजन लाने वाले वह पहले विद्यार्थी बने और प्रेसिडेंट कॉलेज में एडमिशन ले लिया
नरेंद्र विभिन्न विषयों धर्म, इतिहास, दर्शन शास्त्र, सामाजिक विज्ञान, साहित्य और कला के जिज्ञासु थे वह वेद उपनिषद, रामायण, भगवत, गीता, महाभारत और पुराणों के अलावा अनेक हिंदू शास्त्रों में अपनी विशेष रूचि रखते थे. इन शास्त्रों को पढ़कर वह अपनी मन की जिज्ञासाओं को पूरा करते थे.
नरेंद्र हमेशा शारीरिक योग खेल और सभी प्रकार के खेलों में हिस्सा लेते थे. बे भारतीय पारंपरिक संगीत में निपुण थे. एक साल बाद उन्होंने कोलकाता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज में एडमिशन लिया और फिलॉसफी पढ़ना शुरू किया यहां उन्होंने पश्चिमी तर्क पश्चिमी फिलॉसफी और यूरोपियन देशों के इतिहास के बारे में अध्ययन किया.
1884 मैं नरेंद्र ने बीए की डिग्री प्राप्त कर ली थी और उन्होंने वकालत की पढ़ाई भी 1884 का समय स्वामी विवेकानंद के लिए बहुत ही दुखद था क्योंकि इस समय उन्होंने अपने पिता विश्वनाथ दत्त को खो दिया था और पिता की मृत्यु के बाद उनके ऊपर अपने नो भाई बहनों की जिम्मेदारी आ गई थी.
लेकिन वह बिना परिस्थितियों से घबराए उनका सामने करते हुए अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और अपने दृढ़ विश्वास और संकल्प से असंभव को भी संभव बना दिया बचपन से ही बालक नरेंद्र बहुत ही तीव्र बुद्धि के थे जिसके कारण लोग उन्हें श्रुतिधर भी कहते थे.
वह जिस चीज को एक बार देख लेते या पढ़ लेते उसे जीवन में कभी नहीं भूलते थे ऐसा अद्भुत ज्ञानी अभी तक कहीं देखने को नहीं मिला था जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ रही थी वैसे ही उनका ज्ञान भी बढ़ते जा रहा था और ईश्वर के प्रति उनकी श्रद्धा और निष्ठा बढ़ती गई जिसके कारण वह ब्रह्म समाज से जुड़ गए लेकिन उनकी प्रार्थनाओं के तरीके और भक्ति भी उनके ईश्वर के प्रति जिज्ञासा को शांत ना कर सकी.
गुरु रामकृष्ण परमहंस के प्रति स्वामी विवेकानंद की निष्ठा
नरेंद्र जब ब्रह्म समाज से जुड़े तब उन्हें ब्रह्म समाज के प्रमुख देवेंद्र नाथ टैगोर से मिलने का अवसर मिला तब उन्होंने अपनी जिज्ञासा के अनुसार महर्षि देवेंद्र नाथ टैगोर से पूछा कि क्या आपने ईश्वर को देखा है। उनके सवाल को सुनकर देवेंद्र नाथ टैगोर आश्चर्य में पड़ गए और वह समझ गए की इनकी जिज्ञासा को केवल रामकृष्ण परमहंस ही शांत कर सकते हैं। तभी देवेंद्र नाथ टैगोर ने उन्हें रामकृष्ण परमहंस के पास जाने की सलाह दी।
इसके बाद नरेंद्र दक्षिणेश्वर के रामकृष्ण परमहंस से 1881 मैं मिले रामकृष्ण परमहंस बहुत बड़े विद्वान तो नहीं थे। परंतु वह मां काली के परम भक्त थे। वह मां काली के एक मंदिर के पुजारी हुआ करते थे। जब विवेकानंद जी उनसे पहली बार मिले तो उन्होंने अपनी आदत अनुसार उनसे सवाल पूछा कि क्या आपने ईश्वर को देखा है तब उन्होंने उत्तर दिया कि हां देखा है मैंने ईश्वर को इतने करीब से देखा है।
जितने करीब से तुम्हें देख रहा हूं नरेंद्र को ऐसा उत्तर देने वाले वह एकमात्र व्यक्ति थे और उनकी बात की सच्चाई को भी नरेंद्र बखूबी महसूस कर पा रहे थे। उस समय वह पहली बार किसी व्यक्ति से इतने प्रभावित हुए थे। कि वह रामकृष्ण परमहंस जी से बार-बार मिलने लगे और अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्होंने रामकृष्ण परमहंस जी को अपना गुरु बना लिया।
उनके बताए हुए मार्ग पर आगे बढ़ते चले गए नरेंद्र के मन में अपने गुरु की प्रति श्रद्धा और कर्तव्यनिष्ठा और बढ़ते गई गुरु और शिष्य के बीच का यह रिश्ता और अटूट होते चला गया इस प्रकार स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु की छत्रछाया में 5 सालों तक अद्वैत वेदांत का ज्ञान प्राप्त किया।
1885 मैं मुंह के कैंसर जैसी भयानक बीमारी से रामकृष्ण परमहंस जूझ रहे थे तभी उनके एक शिष्य ने उनकी सेवा मैंआनाकानी करते हुए घृणा दिखा दी। इस बात से स्वामी जी को बहुत दुख हुआ और उन्होंने अपने गुरु की सेवा की जिम्मेदारी खुद ले ली अपने गुरु के प्रति सेवा और प्रेम को दर्शाते हुए स्वामी जी उनके बिस्तर के पास रखी कफ और रक्त की थूकदानी को स्वयं उठा कर फेंक देते थे।
गुरु के प्रति निष्ठा और अनन्य भक्ति को वह निस्वार्थ भाव से करते थे। वह अपने अस्तित्व को गुरुदेव में विलीन कर भविष्य में संपूर्ण विश्व में भारत के खजाने आध्यात्मिक भंडार का प्रचार प्रसार करना चाहते थे उनके गुरु के प्रति उनके ह्रदय में अपार प्रेम और श्रद्धा थी जिसका परिणाम संपूर्ण संसार ने देखा था।
उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन अपने गुरु को समर्पित कर दिया था उनके गुरु का शरीर पूरी तरह से जर्जर हो गया था। परंतु वह फिर भी अपने परिवार और स्वयं की भोजन की चिंता किए बिना गुरु भक्ति में लगे रहते थे तभी रामकृष्ण परमहंस ने अपने प्रति इतना समर्पण देख स्वामी जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
रामकृष्ण मठ की स्थापना ( Ramakrishna Math Establishment )
16 अगस्त1886 को स्वामी जी ने वराहनगर में रामकृष्ण संघ की स्थापना की उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के बाद क्योंकि उनकी गुरु ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया था. लेकिन बाद में इसका नाम रामकृष्ण मठ रख दिया गया महज 25 वर्ष की उम्र में रामकृष्ण मठ की स्थापना के बाद स्वामी जी ने ब्रम्हचर्य और त्याग का व्रत लिया और इसके बाद वह नरेंद्र के नाम को छोड़ स्वामी विवेकानंद के नाम से पहचाने जाने लगे.
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु ( Swami Vivekananda Death )
भारत के एक नए भारत के निर्माण में लगे हुए स्वामी जी निरंतर चलते रहे और उनके जीवन में वह दिन आया जिसने आध्यात्मिक धरोहर के एक संत को हमसे छीन लिया जिसने विदेशों में भारत का परचम लहराया था. 4 जुलाई 1902 अपने जीवन के अंतिम दिन वह सुबह जल्दी उठकर बेलूर मठ गए और 3 घंटे ध्यान किया उसी दिन उन्होंने शुक्ल यजुर्वेदसंस्कृत व्याकरण और योग की फिलॉसफी को समझाते हुए.
अपने शिष्यों से कहा कि अब एकऔर विवेकानंद चाहिए यह समझने के लिए कि इस विवेकानंद ने अब तक क्या किया है और शाम को 7:00 बजे अपने कमरे में चले गए और कह दिया कि अब मुझे कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा और रात 9:10 के दौरान उनकी मृत्यु हो गई उनकी मृत्यु को उनके शिष्यों ने बताया कि स्वामी विवेकानंद ने महासमाधि ले ली है. उनका अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट पर किया गया
स्वामी विवेकानंद का प्रभाव
अत्यंत प्रभावशाली और विलक्षण प्रतिभा के धनी स्वामी विवेकानंद पर कोई प्रभावित था उन्होंने देश के हर युवा के अंदर एक नई ऊर्जा का संचार किया जिससे युवाओं को ना सिर्फ मार्गदर्शन मिला बल्कि वह अपने जीवन को संवारने मैं भी सक्षम बने.
स्वामी विवेकानंद से ऐसे लोग भी प्रभावित हुए जिनका जीवन स्वयं दूसरों को प्रभावित कर सकता है इन लोगों में मुख्यतः हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, बाल गंगाधर तिलक, नरेंद्र मोदी, अन्ना हजारे, निकोला टेस्ला, एनी बेसेंट रोलेंडे, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी प्रभावित थे यह ऐसे व्यक्ति थे.
वर्तमान समय में जिनका जीवन भी आदर्श बना हुआ है परंतु यह सोचने का विषय है कि स्वामी विवेकानंद कितने सरल और सुगठित व्यक्ति थे. जिनके आदर्शों से इतने महान लोग प्रभावित हुए थे.
स्वामी विवेकानंद के साहित्यिक कार्य
बानहट्टी के अनुसार स्वामी विवेकानंद अपने आप में संपूर्ण कलाकार थे वह अच्छे लेखक गायक और चित्रकार थे उनके द्वारा लिखे गए निबंध रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ दोनों ही मैगजीन में छपेस्वामी विवेकानंद ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भाषा पर अपनी अच्छी पकड़ जमा ली थे.
जिसके कारण उन्होंने जितने भी व्याख्यान दिए उन्हें लोग बहुत ही आसानी से समझ सके क्योंकि उनके व्याख्यान बहुत ही प्रभावी होते थे.
स्वामी विवेकानंद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. जिनका हर किसी पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा उनका जीवन भारत के संपूर्ण युवा के लिए एक आदर्श है. वह कहते थे कि यदि व्यक्ति चाहे तो एक दृढ़ संकल्प लेकर वह सब कुछ हासिल कर सकता है जो वह पाना चाहता है हर साल स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिवस को 12 जनवरी युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है इसे स्वामी विवेकानंद की जयंती भी कहा जाता है.
स्वामी विवेकानंद मेमोरियल
स्वामी जी अपने जीवन काल के दौरान 24 दिसंबर1892 को कन्याकुमारी पहुंचे यहां पर इन्होंने लगातार तीन दिनों तक समुद्र की एक पहाड़ी पर जाकर एकांत में ध्यान किया.यह पहाड़ी आज विवेकानंद मेमोरियल के नाम से जानी जाती है और बहुत प्रसिद्ध एवं दार्शनिक स्थल बन चुकी है.
इस तरह स्वामी जी ने अपना संपूर्ण जीवन परोपकार में ही बिता दिया और हमारे उत्थान के लिए एक नए भारत का निर्माण किया.
स्वामी विवेकानंद जयंती ( swami Vivekananda Jayanti )
स्वामी विवेकानंद बहुत ही ज्यादा बुद्धिमान और प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे उनके स्वभाव और देश के लिए हमेशा अच्छे कामों के कारण उन्होंने सभी लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लिया था। इसी के कारण सभी युवाओं की नजरों में स्वामी विवेकानंद एक आदर्श के रूप में बन गए थे। 12 जनवरी को युवा दिवस के रूप में देश में मनाया जाता है और वह कहते हैं कि व्यक्ति योग और साधना से जीवन में सब कुछ पा सकता है।
स्वामी विवेकानंद का योगदान ( swami vivekananda ka yogdan )
अपने जीवन काल में स्वामी विवेकानंद ने जो भी कार्य किए और योगदान दिया इन्हें हम तीन भागों में बांट सकते हैं।
- भारत के प्रति योगदान।
- हिंदुत्व के प्रति योगदान।
- वैश्विक संस्कृति के प्रति योगदान।
स्वामी जी के अनमोल वचन ( Swami Vivekananda Quotes)
- ब्राह्मण की सारी शक्तियाँ हमारी हैं यह हम ही हैं जो अपनी आँखों के आगे हाथ रख लेते हैं और रोते हैं कि अंधकार हैं.
- उठो जागों और तब तक मत रुको जब तक अपना लक्ष्य प्राप्त ना कर सको.
- जब तक तुम अपने आप में विश्वास नहीं करोगे, तब तक भगवान में विश्वास नहीं कर सकते.
Q. स्वामी विवेकानंद का जन्म कब हुआ?
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ।
Q. स्वामी विवेकानंद का पूरा नाम क्या है?
स्वामी विवेकानंद का पूरा नाम नरेंद्रनाथ दत्त है।
Q. स्वामी विवेकानंद की मृत्यृ कब हुई?
स्वामी विवेकानंद की मृत्यृ 4 जुलाई 1902 को हुई।
Q. स्वामी विवेकानंद ने कहां तक की शिक्षा प्राप्त?
स्वामी विवेकानंद ने बेचलर ऑफ आर्ट की शिक्षा प्राप्त की है।
अंतिम शब्दों में
दोस्तों इस लेख में हमने आपको स्वामी विवेकानंद के जीवन परिचय ( Swami Vivekananda Biography in Hindi ) के बारे में बताया है स्वामी विवेकानंद भारत के एक महान व्यक्ति थे उनकी याद में युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है इस लेख में हमने स्वामी विवेकानंद की वह सभी बातें विस्तार से बताइए जिसको जानने के बाद आपके अंदर एक नई ऊर्जा का संचार होगा.
आशा करते हैं हमारे द्वारा दी गई सभी जानकारी से आप खुश होंगे और इसी प्रकार अन्य जानकारी प्राप्त करने के लिए हमें कमेंट बॉक्स में कमेंट जरुर करें और ऐसा भी जानकारी आप अपने मित्रों को फेसबुक टि्वटर टेलीग्राम के माध्यम से जरूर शेयर करें.
हरिवंशराय बच्चन का जीवन परिचय | Harivansh Rai Bachchan Biography in hindi